भारत में  बाघ अभयारण्यों एवं उनके संरक्षण के नाम पर  सैकड़ों हजारों आदिवासियों का जीवन नष्ट हो रहा है। भारत सरकार अवैध रूप से उन्हें उनकी जमीन, जहां वे सदियों से रहते आए है और जिसकी उन्होने हमेशा से रक्षा करी है,  से बेदखल कर रही है। 

 

उन पर वन्यजीवों को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया जाता है। लेकिन, बाघों को मारना तो दूर की बात है, कई आदिवासी समुदाय उन्हें देवता के रूप में पूजते हैं और अपने पर्यावरण की देखभाल किसी और की तुलना में बेहतर तरीके से करते हैं। जहाँ पर आदिवासी लोगों के बाघों के साथ सह-अस्तित्व में रहने के अधिकार को मान्यता दी गई थी, वहाँ बाघों की संख्या ज्यादा बढ़ी है

 

 “वन विभाग जानवरों की रक्षा के नाम पर हमें जंगल से बाहर निकालना चाहता है। लेकिन हम मानते हैं कि जंगल हमारी मां है, हम कहते हैं कि बाघ हमारा भाई है। हम जंगल की रक्षा करते हैं। ” टी. गुरुवैया, चेंचू (कर्नाटक का एक आदिवासी समुदाय)

 

भारतीय कानून विशेष रूप से आदिवासियों के अपने पैतृक आवासों पर बने रहने के अधिकार की रक्षा करता है। लेकिन इन कानूनों का सम्मान नहीं किया जाता है। कई आदिवासी लोग अपना दैनिक जीवन कैद, यातना, पिटाई या गोली लगने के डर में लगातार जी रहे हैं। उनका पूरा जीवन जंगलों पर निर्भर है, और इन जंगलों से इन्हें हटाने के लिए वन अधिकारी उन्हें नस्लवाद, हिंसा आदि अमानवीय तरीकों से प्रताड़ित करते हैं। उन्हें पूजा और यहां तक कि उनके अंतिम संस्कार सहित दैनिक गतिविधियों को करने से रोकते हैं।

 

आदिवासियों का निष्कासन भारत के वन विभाग द्वारा किया  जाता हैं लेकिन कई बड़े संरक्षण संगठन, जैसे कि वन्यजीव संरक्षण सोसायटी (WCS) और WWF, प्रत्यक्ष और परोक्ष इसका समर्थन करने के लिए दोषी हैं। वे दावा करते हैं कि आदिवासी लोगों के स्थानांतरण "स्वैच्छिक" हैं। यह एक प्रकार की ठगी और धूर्तता है। साक्ष्य यह साबित करते हैं कि, कई मामलों में, ये स्थानांतरण वास्तव में जबरन निष्कासन हैं

 

 

परंतु जंगल एवं आदिवासी एक दूसरे के बिना जीवित नहीं रह सकते हैं। जैसा की यह आदिवासी हमें स्वयं बताते है कि अगर उन्हें जंगल से हटा दिया गया तो, जंगल और बाघ भी गायब हो जाएंगे।

 

वर्षों से सर्वाइवल (Survival) इस प्रकार के निष्कासन के खिलाफ अभियान चला रही है और इस प्रताड़णा के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लड़ाई का नेतृत्व कर रही है। अब हमें आपकी मदद की आवश्यकता है। हम एक साथ मिलकर संरक्षण के इस विध्वंसक मॉडल को बदल सकते हैं ताकि यह आदिवासी लोगों के लिए, उनके अधिकारों का सम्मान करे एवं आदिवासियों का, प्रकृति का, सम्पूर्ण मानवता का संरक्षण किया जा सकें। 

 

भारत के बाघ अभ्यारण्यों से आदिवासियों के अवैध निष्कासन  को रोकने लिए कदम उठाए